वह तस्वीर चे ने खुद कभी नहीं देखी। उस
तस्वीर से उसके छविकार ने कभी एक पैसा नहीं कमाया। मगर दुनिया के हर कोने
में आज वह छवि मौजूद है। विद्रोह और क्रांति के एक सशक्त प्रतीक के रूप
में। ‘टाइम’ पत्रिका द्वारा चे गेवारा को पिछली सदी की सौ हस्तियों में
शरीक करने से बहुत पहले वह छवि दुनिया में सबसे ज्यादा छपी तस्वीर घोषित हो
गई थी।
क्यूबा के छायाकार एल्बर्तो कोरदा ने 5
मार्च, 1960 को हवाना के क्रांति चौक पर चे गेवारा की उस बेचैन मुद्रा को
पकड़ा था। वह चे की सामान्य छवि नहीं थी। मगर उस रोज पूरा मुल्क गमगीन था।
एक भारवाही जहाज में हुए विस्फोट में बहत्तर नागरिक मारे गए थे। फिदेल
कास्त्रो ने हादसे को अमेरिका समर्थित गद्दारों की कार्रवाई करार दिया।
क्रांति चौक पर शोक में एक सभा हुई। लाखों लोग उसमें शामिल हुए। उसमें
सिमोन द बुआ और ज्यां पॉल सार्त्र भी मौजूद थे। वे चे के बुलावे पर कुछ रोज
पहले क्यूबा आए थे।
चे सभा में थोड़ा देर से पहुंचे। मुख्य मंच
के सामने बनी अस्थायी चौकी पर चुपचाप पीछे की तरफ खड़े हो गए। आगे भीड़
ज्यादा थी। चौकी पर कुछ जगह हुई। चे आगे आए। एक नजर लोगों के सैलाब पर
डाली। फिर शायद बेगुनाह मृतकों का खयाल उभर आया। उनकी आंखों में लोगों ने
रोष देखा।
उस वक्त कोरदा नीचे से चौकी पर खड़े सार्त्र
की तस्वीर ले रहे थे। उन्होंने देखा, आधे जूम वाले कैमरे की आंख में चे का
चेहरा है। बिखरे हुए लंबे बाल। सुनहरे तारे वाली काली टोपी। हरा जरकिन।
हवा में खुनकी थी, सो जरकिन गले तक कस रखा था। कोरदा ने दो तस्वीरें लीं।
चौड़ा फ्रेम। एक तरफ सुरक्षाकर्मी, दूसरी तरफ पेड़ की डाल। अगले ही क्षण चे
वापस पीछे हो गए।
चे की वह छवि कहीं कोरदा की फाइलों में जमा
हो गई। सात साल बाद अचानक इटली के एक प्रकाशक फेल्त्रीनेल्ली तस्वीर ले
गए। पैसे के बारे में पूछने पर कोरदा ने जवाब दिया, कोमान्दांते (कमांडर)
की छवि से मैं पैसा नहीं बनाता।
इस बीच बोलीविया के जंगल में चे पकड़े गए।
बाद में उन्हें मार दिया गया। फेल्त्रीनेल्ली ने चे की ‘बोलीविया डायरी’ के
आवरण पर वह तस्वीर इस्तेमाल की – सलीके से चेहरे के इर्द-गिर्द की जगह
छांट कर। किताब के लिए बना एक पोस्टर- जिस पर केवल छवि थी- किताब से ज्यादा
लोकप्रिय हुआ।
मशहूर आयरिश कलाकार जिम फिट्जपेट्रिक ने उस
पोस्टर के आधार पर एक काले-सफेद पोर्ट्रेट की रचना की। वह युवकों में
लोकप्रिय हो गया। बाद में, बताते हैं, अमेरिकी चित्रकार एंडी वारहोल ने
अपनी एक कृति में चे की वह छवि टांक दी।
कभी संयोग से खींची गई वह तस्वीर जाने
कितने रूपों में ढली और पोस्टर-कलाकृतियों से होते हुए लोगों के पहनावे पर
छा गई। आज सिगार, लाइटर, कैलेंडर, पेन और घड़ियों से लेकर टीशर्ट-टोपियों तक
वह छवि हर कहीं नुमाया है – झारखंड से लेकर संयुक्त राज्य अमेरिका तक।
विज्ञापनों में भी उस तस्वीर का नाजायज इस्तेमाल होता है।
विडंबना है कि जुझारू चे के चेहरे का आज इतना बड़ा बाजार है। क्रांति का दूत रूमानी युवकों के लिए मानो फैशन का हरकारा है!
[This article was published in Janasatta on 23 September, 2007. ओम थानवी is editor of जनसत्ता। ]
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