Friday, May 6, 2011

अपने खाली समय में : फदील अल-अज्ज़वी








  
 
अपने लम्बे और उबाऊ खाली समय के दौरान 
मैं पृथ्वी के गोले से खेलने बैठ जाता हूँ.
मैं कुछ मुल्क बनाता हूँ बगैर पुलिस या किसी गुट के 
और कुछ को निकाल देता हूँ जो अब उपभोक्ताओं को आकर्षित नहीं करते.
बंजर रेगिस्तानों से मैं गुजार देता हूँ कल-कल बहती नदियाँ 
और बनाता हूँ कुछ महाद्वीप और समुद्र 
जिसे बचा कर रख लेता हूँ भविष्य के लिए कि क्या पता.   
मैं मुल्कों का एक नया रंग-बिरंगा नक्शा बनाता हूँ :
जर्मनी को लुढ़का देता हूँ व्हेलों से भरे प्रशांत महासागर में
और कुहरे में उसके किनारों पर 
गरीब शरणार्थियों को करने देता हूँ यात्रा 
अवैध जहाज़ों पर 
सपना देखते हुए बावरिया में वादा किए गए बागों का. 
इग्लैंड को बदल देता हूँ अफगानिस्तान से 
ताकि उसके नौजवान मुफ्त में पी सकें हशीश 
हर मैजेस्टी की सरकार के सौजन्य से उपलब्ध कराई गई. 
बाड़ लगी और बारूदी सुरंगें बिछी सरहदों से, कुवैत को 
मैं चुपके से पहुंचा देता हूँ 
ग्रहण के चंद्रमा के द्वीप समूह कोमोरो तक 
उसके तेल के भण्डार समेत. 
साथ-साथ, नगाड़ों की ऊंची आवाज़ के बीच 
मैं बग़दाद को उठा ले जाता हूँ 
ताहिती द्वीपों तक.
सऊदी अरब को मैं दुबका बैठा रहने देता हूँ अपने अंतहीन रेगिस्तान में 
उसके अच्छी नस्ल के ऊंटों की शुद्धता को सुरक्षित रखने के लिए. 
फिर मैं इंडियंस को वापस सौंप देता हूँ अमेरिका 
इतिहास को वह इंसाफ देने के लिए 
जिससे वह बहुत दिनों से वंचित था. 

मुझे पता है कि दुनिया बदलना इतना आसान नहीं 
मगर फिर भी यह जरूरी है बहुत-बहुत.
(अनुवाद : मनोज पटेल)

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