Thursday, May 5, 2011

love poems


I chose these 5 love poems for you which are composed by the top most famous poets in the World. I got these poems in the http://padhte-padhte.blogspot.com which are translated by Manoj Patel.

मुहब्बत 
: अफजाल अहमद सैयद 
तुम्हारे क़दमों के लिए 
मेरा दिल 
उस पुल की तरह है 
जो पानी की सतह से नीचे रह गया 

मैनें अपने आप को 
उस कुत्ते की तरह बेवकअत कर दिया 
जो नए मालिक को अपना नाम नहीं बता सकता 
और पुराना मालिक किसी हादसे में मारा जा चुका 

मैनें अपने आप को नाकाम कर दिया 
खुद को एक दर्दनाक मौत तक ले जाने 
और एक फहशबाजारी नौहा तरतीब देने में 
जिसे तुम अपना कोई आँसू खुश्क करने के लिए 
सफ़ेद रुमाल की जगह इस्तेमाल कर सकती 

मेरे जूतों में राख भरी है 
और मेरे पैर गायब हैं 

मुहब्बत कोई इल्म 
कोई हथियार, कोई हलफ नहीं 
कि आसानी से उठा लिया जाता 

मेरे दिल में राख भरी है 
और एक अजनबी जहर 
मुहब्बत एक जाल है 
जिसमें राख भरी है 
और मेरे दोनों हाथ 

मैनें अपने आपको ज़ाया कर दिया 
उस बारिश के इंतज़ार में 
जो मेरे पैरों, मेरे दिल, मेरे हाथों को 
बहा ले जाए 
और तुम उनसे कोई यादगार बनाकर 
उसका नाम मुहब्बत रख सको 

बेवकअत  - तिरस्कृत,  नौहा  - शोकगीत,  ज़ाया  - बरबाद,नष्ट 
                    * * 

लाल बत्ती पर नहीं रुकता प्रेम : निजार कब्बानी 
सभी फातिमाओं से खूबसूरत 
पेरिस के प्लेस दी ला कांकोर्ड वाली फातिमा,
नक्श गोया मोतियों की सुडौल लिखावट से जड़ी कोई तलवार 
गीतों से घिरी हुई 
कमर

जुबां यों कि जिसमें घुल जाती हों भाषाएँ सारी,
तुम्हारा इस्तकबाल करता हूँ मैं पेरिस में,    
मेरे बदन के कोने-अंतरे खंगालते  
सुखद हो तुम्हारा आगमन यहाँ
अरब की लड़की, जिसकी आँखों से टपकता रहता है काला शहद  
सुख झरता है जिसके होंठों से 
इतवार की सुबह तो तुम्हारी बालियाँ यों करती हैं रुन-झुन 
घंटियों की मीनार हो कोई गोया 
उम्मीद भी नहीं थी मुझे कि किसी दिन 
आर्क दी त्रिओम्फ़ के नीचे से गुजरूँगा तुम्हारे साथ 
एक अन्जान प्रेमी की कब्र पर गुलाब का एक फूल रखने के लिए
फातिमा :  
वह मुंह तुम्हारा इलायची की खुश्बू से भरा
पाँव जैसे हलके रंग में रंगे
सोचा भी नहीं था कि होऊंगा कभी 
अरब और फ्रांस के इतिहास का 
सबसे मशहूर आशिक 
उम्मीद नहीं की थी कभी कि 
पेरिस में दाखिल होऊंगा एक अरब पासपोर्ट लिए 
और जाऊंगा यहाँ से 
फ्रांस का राज्याध्यक्ष होकर !!
                    * *

इस सदी के मध्य में : येहूदा आमिखाई 
इस सदी के मध्य में हम मिले एक-दूसरे से 
आधा चेहरा और पूरी आँखें लिए 
जैसे मिस्र की कोई प्राचीन पेंटिंग
और वह भी मुख़्तसर से वक्फे के लिए

तुम्हारे सफ़र की विपरीत दिशा में सहलाए तुम्हारे बाल
पुकारा एक-दूसरे को हमने
जैसे पुकारते हैं लोगबाग उन शहरों के नाम 
जिनमें नहीं रुकना होता उन्हें 
उधर से गुजरते हुए

खूबसूरत है यह दुनिया जो जाग जाती है तड़के, बुराई के लिए
खूबसूरत है यह दुनिया जो सोती है गुनाह और माफी के लिए
मेरे और तुम्हारे मिलन के कुफ्र में
खूबसूरत है यह दुनिया

धरती निगल जाती है लोगों को और उनके प्रेम को 
शराब की तरह, भुलाने के इरादे से. मगर भुला नहीं पाएगी वह
और जूडियन की पहाड़ियों की आकृति की तरह,
हमें भी नहीं मिलेगा चैन कहीं

इस सदी के मध्य में हम मिले एक-दूसरे से

2 comments:

  1. amazing poems..carry on this project.
    Pavan Patel
    CSSS/SSS, JNU, N Delhi

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  2. beautiful poems posted !!!!!!!!

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